शुभम श्रीवास्तव
झांसी, 28 फरवरी 2020 (दैनिक पालिग्राफ)। झांसी के इतिहास में शुक्रवार को एक नया अध्याय जुड़ गया। हमारा झांसी साहित्य, कला, संस्कृति, लोकगीत, लोकनृत्य के मानचित्र पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। देश भर के एवं विशेषकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र के नामी गिरामी साहित्यकारों और कलाकारों की उपस्थिति में बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव 2020 का उद्धघाटन मुख्य अतिथि झांसी मण्डल के आयुक्त सुभाष चंद्र शर्मा एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो जयंत विनायक वैशम्पायन ने मंचासीन सभी विशिष्ट जनों के दीप प्रज्जवलन कर किया। मुख्य अतिथि ने कहा की इस मंच से झांसी के किले की दिवार दिख रही है और स्वंय रानी इसकी साक्षी हैं कि उनके प्रागंण यह कार्यक्रम हो रहा है। सुभद्राकुमारी चैहान की रानी पर लिखी पंक्तियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रानी ने झांसी को भारत के मानचित्र पर अलग पहचान दी है। आज इस भूमि को यह महोत्सव समर्पित करते हुए हम सभी इस बात की आशा करते हैं यह झांसी की संस्कृति के वैश्विक प्रसार में सहायक होगा। महोत्सव के उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय प्रो जेवी वैशम्पायन ने कहा कि यहां आने से पूर्व लगता था कि बुन्देलखण्ड एक पिछड़ा हुआ क्षेत्र है। लेकिन आज एक वर्ष से अधिक समय गुजारने के बाद लगता है कि यह सभी क्षेत्रों में समृद्ध है। विशेषकर सांस्कृतिक रूप से। झांसी के किले के संबध में उन्होंने कहा कि देश में किले तो बहुत हैं पर दो किले ही ऐसे हैं जो वीरता के परिचायक हैं। चितौड़गड़ और झांसी। उन्होंने सांस्कृतिक उत्सव की इस पहल के लिये आयोजकों की सराहना की। जिलाधिकारी झांसी आंद्रे वामसी ने बुन्देलखण्ड के नाम के पीछे की कथा का जिक्र करते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड का नाम बुंद से बुन्देली और फिर बुन्देलखण्ड पड़ा है। उन्होंने बताया कि आधुनिकता के दौर में भी अपनी संस्कृति तो पोषित करने का यह प्रयास एक नई पहल है। वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखिका मैत्रयी पुष्पा ने कहा कि दिल्ली में बहुत से लोग मुझे कहते थे कि आप बुन्देलखण्ड मेेें एक साहित्य महोत्सव की शरूआत करें। मेरी बड़ी इच्छा थी। आज जब यह सपना साकार हो रहा है तो मुझे बहुत खुशी है। जो साहित्यकार अबतक केवल दिल्ली और अन्य बड़े स्थानों पर दिखते थे आज सभी झांसी में देखने और सुनने को मिलेंगे। झांसी के लिये यह गौरव की बात है। पदमश्री कैलाश मड़वैया ने यह साहित्य समागम अपने में केवल को साहित्य तक ही सीमित नहीं है बल्कि कई विधाओं को समेटे है। झांसी की लोककलाओं के मर्मज्ञ हरगोविंद कुशवाह ने छत्रसाल की कथा का जिक्र करते हुए बुंदेली में पंक्तियों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया की आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व ऐसा कार्यक्रम आयोजित हुआ था जिसमें 40 से अधिक लोकविधाओं की प्रस्तुति दी गयी थी। यह पहल लम्बे अर्से बाद हुई है लेकिन अब यह क्रम रूकेगा नहीं। सिने जगत के हस्ताक्षर एवं बुन्देली हृदय में बसने वाले राजबुन्देला ने कहा की यह हमारा अपना मंच बुन्देली संस्कृति को समर्पित है। निश्चित ही हमारी संस्कृति को विस्तार मिलेगा। इसके साथ मुकुन्द मेहरोत्रा एवं डा नीति शास्त्री ने भी बुन्देली में बोल को सभी को आमंत्रित किया। महोत्सव के संयोजक डा पुनीत बिसारिया ने उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं दिन में होने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। आयोजन सचिव चंद्र प्रकाश ने सभी का आभार जताया। संचालन डा रेखा लगरखा एवं डा सुनील त्रिवेदी ने किया।
इस अवसर पर संयुक्त विकास आयुक्त चंद्रशेखर शुक्ला, उपाध्यक्ष झांसी विकास प्राधिकरण सर्वेश दीक्षित प्रो देवेश निगम, डो रेखा पाण्डेय, डा डीके भट्ट, प्रो प्रतीक अग्रवाल, योगिता यादव, डा मुन्ना तिवारी आदि के साथ झांसी के कई वरिष्ठजन एवं नागरिकगण उपस्थित रहे।
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