- श्री श्री 108 श्री देवी प्रसाद महाराज, पूर्व प्रधान पुजारी, मां शारदा शक्ति पीठ, मैहर
मयंक श्रीवास्तव
मैहर (सतना), 7 अप्रैल 2020 (दैनिक पालिग्राफ)। हनुमान जी ऐसे शक्तिशाली, बलशाली, अजर अमर गुण के निधान हैं। मेरी निगाह में उनके जैसा कोई नहीं हुआ जो सामान्य रूप से अपने को सदैव भूले बैठे हैं। जिसे राम के अलावा स्वयं का अनुभव ना हो, जो राममय हो गया हो, रामाधीन हो गया हो, राम तत्व में विलीन हो गया हो और राम का ऐसा प्रेमी जिसने राम को अपने आधीन कर लिया हो। मेरी दृष्टि से तीन लोक 14 भुवन तो राम के वश में है पर राम को वश में करने वाला इस संसार में एक ही है हनुमान।
उक्त उद्गार मंगलवार को मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर में स्थित मां शारदा शक्ति पीठ के पूर्व प्रधान पुजारी श्री श्री 108 श्री देवी प्रसाद महाराज ने दिए। उन्होंने कहा कि जिसके विषय में मनुष्य क्या देवता भी ना लिख सकते, ना कह सकते और ना बता सकते। एक ऐसा अवतार जिसने अपने स्वामी राम के काज किए, समुद्र लांघा, लंकिनी मारा, अक्षय मारा, लंका का बाग उजारा, अनगिन राक्षसों को मारा। उन्होंने कहा कि मेघनाथ बांधकर जब ले गया तो रावण ने हनुमान जी का तिरस्कार किया और आसन नहीं दिया। तब रावण से ज्यादा ऊंचा आसन हनुमान जी ने अपनी पूछ से बनाया और उस पर विराजमान हुए। रावण ने पूछा तुमने इतने राक्षस मारे बाग गुजारे क्यों किया ऐसा। हनुमान जी ने कहा भूख लगी तो भोजन किया और लंकेश जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे। इसके उपरांत हनुमान जी ने ब्रह्म पास को तोड़ दिया। रावण के सामने उठकर खड़े हुए और हनुमान जी ने रावण से कहा- ‘दशानन राम की आज्ञा नहीं है, नहीं तो तेरे दसों सिर तोड़कर समुद्र में फेंक देता।’ वहां से आनंद पूर्वक चले। जो मूल कार्य था सीता का पता लगाना वह लगा चुके थे। सोने की लंका जलकर राख हो गई। और तदांतर वीर, महावीर, रणधीर, परमात्मा राम के पास पहुंच जाते हैं। ऐसे महाबली हनुमान को अपने बल का कभी मान नहीं रहता। जब कोई कभी उनको उनके बल की याद दिलाए तो याद आती है। ऐसा कोई भी इस संसार में नहीं हुआ। ऐसा है पवन पुत्र अंजनी का लाल, विकराल, कालों का काल, संपूर्ण अष्ट सिद्धियों का स्वामी। जिसे राम स्वयं याद करते हों, स्मरण करते हों। ऐसी बात हमने सोचा, समझा, बुझा और शब्द अंकमाल किए हैं। जिनका चारों युग में समान रूप से राज्य चल रहा है। यहां देखा जाए कि जितने भी अवतार हुए हैं चाहे सतयुग में सत्य अवतारी हुए हैं त्रेता में राम अवतारी हुए हैं और द्वापर में भगवान कृष्ण हुए हैं। हर अवतार अपने एक एक युग में रहे हैं लेकिन पवनसुत हनुमान, सकल गुण निधान, वीरों में महान, जो समान रूप से चारों युग में प्रत्यक्ष रूप में निवास करते हैं। धर्म के इतिहास में जब जब कोई अवतार हुए हैं एक ही युग में रहे हैं। दूसरी चीज बहुत मूल बात जो मेरी समझ में आई कि हनुमान जैसा अवतारी ना कोई हुआ है, उनके अलावा ना कोई है और ना कोई होगा। भगवान के रूपों में हो, देवता के रूपों में हो या मनुष्य के रूप में हो, कामदेव को अपने पैरों के तले दबा दे मेरी समझ में ऐसा कोई दूसरा नहीं हुआ। जबकि देखे यहां पर ये भगवान शिव के अवतारी हैं और भगवान शिव को भी कामदेव का बाण लगा। भले ही कामदेव को भस्म कर दिया गया हो। वो केवल अगर इतिहास में मिलता है तो पवन पुत्र अंजनी लाल का इतिहास मिलता है कि कामदेव को पैरों के तले दबा दिया।
उन्होंने बताया कि दूसरी चीज प्रत्येक सगुण रूप धारण करने वाले को ‘मैं’ अर्थात् अपनेपन की जानकारी रहती है लेकिन हनुमान जी तो अपने ‘मैं’ को भी समाप्त किए हुए हैं। हनुमान शब्द की व्याख्या से ही समझा जाए, देखा जाए, विचार किया जाए, निर्णय लिया जाए, तत्व दर्शन किया जाए। तदोपरांत निर्णयात्मक बुद्धि का निर्णय मान्य होकर निश्चय किया जाता है कि अवलोकनार्थ बुद्धि शब्द ब्रह्म प्रकाशित करती है। निर्णयात्मक मत देते हुए ‘हनुमान’ की बुद्धि भी प्रशंसा करती है। हनुमान माने ह नन कर दिया हो मान अपना। सम्मान से रहित हो। ऐसा भक्त शिरोमणि धरा की गोद में पैर धरा। अहिरावण को मारकर, राम लक्ष्मण को पाताल पुरी से सुरक्षित पृथ्वी पर ले आए।
मां शारदा शक्ति पीठ के पूर्व प्रधान पुजारी देवी प्रसाद महाराज ने हनुमान जी के विषय में अपने जीवन का निजी अनुभव बताते हुए कहा कि अर्ध चेतन अवस्था में उनका ऑक्सीजन 50-55 के लगभग हो गया था। उन्हें लोग गाड़ी में ले जा रहे थे। जब अस्पताल पास में रहा होगा तभी हनुमान जी उनको रास्ते में दिखे। उन्होंने गाड़ी में बैठे लोगों से कहा कि हनुमान जी दिखाई दे रहे हैं। जबकि कोई रास्ते में मंदिर भी नहीं था।
उन्होंने एक और स्मरण याद कर भक्तों से साझा करते हुए कहा कि एक बार की बात है हनुमान जी ने स्वयं बुलाया और कहा कि ऐसा करो तो मैं तुम्हारी ब्रह्म स्थिति ला दूंगा। मैं चुप रहा मैंने कुछ नहीं कहा। अस्तु कहा जा सकता है कि ब्रह्म अवतारी, दिव्य अवतारी इस भूमंडल पर आते गए पर परम वैष्णव हनुमान जी, परम सन्यासी, स्वर्ण के समान संपूर्ण देह देदिप्यमान, परम प्रकाशित सदा एक रस रहते हैं, राम गुण गाते हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे दिव्य प्रकाशवान, दिव्य अवतारी अवतरित होने नहीं आए। ऐसा हम तो समझते हैं कि करोड़ों सूर्य भी हनुमान जी के तेज का मुकाबला नहीं कर सकते।
उन्होंने बताया कि हनुमान जी की उपासना में ध्यान देने की बात यह है यहां पर स्वामी और सेवक का संबंध है। और फिर ह्रदय में सीताराम बैठे हुए हैं और वह स्वयं चरण में बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा कि हनुमानजी की उपासना में हनुमान जी का मूल मंत्र है राम। हनुमान जी का जप-तप, पूजा-पाठ, ध्यान-धारणा, समाधि, मनन- चिंतन, पाठन पाठन कुछ भी अगर सीधे हनुमान जी के नाम से किया जाए तो हनुमान जी कभी स्वीकार नहीं करते। क्योंकि हनुमान जी कहते हैं कि मैं नहीं हूं मेरे रोम रोम में ‘श्रीराम’ है। उन्होंने कहा कि यह हमारे निजी विचार हैं सीधे हनुमान जी अपनी पूजा स्वयं स्वीकार नहीं करते। हनुमान जी का रोम रोम राम मय है। हनुमान जी की उपासना करने वालों को चाहिए कि लक्ष्य भले ही हनुमान जी हों। साधक सिद्धों को चाहिए कि सर्वप्रथम राम का मंत्र हो चाहे, राम का नाम हो। साधक सिद्धों को इसलिए भी राम जी का भजन, पूजा-पाठ जरूरी है कि हमने ईष्ट हनुमान जी को बनाया है तो महा ईष्ट के सामने ईष्ट की पूजा नहीं होती अर्थात गुरु के समक्ष शिष्य की पूजा नहीं होती। स्वामी के समक्ष सेवक की पूजा नहीं होती। इसलिए पहले राम का नाम लें फिर हनुमान जी की पूजा करें।
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