क्या है बिठूर में गंगा नदी के ब्रह्मावर्त घाट की गाथा, जानें पालिग्राफ न्यूज़ की इस खास रिपोर्ट में...
Edited by : शुभम श्रीवास्तव
रिपोर्ट : ताराबाबू/नीरज गुप्ता/शिवम कश्यप
कानपुर(बिठूर), 23 अगस्त 2020। कानपुर से महज 17 किमी की दूरी पर स्थित बिठूर के इतिहास के बारे में जानें तो हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के पूर्व यहां तपस्या की थी। इसी के तहत आज भी ब्रह्मावर्त घाट है। यहां पर हर रोज सैकड़ों की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते हैं। यहीं पर ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था। मान्यताओं के अनुसार ब्रह्म खूंटी विश्व का केंद्र बिंदु है। ब्रह्मा जी के सिर्फ दो ही मंदिर हैं। एक पुष्कर में जहां उनकी प्रतिमा है और दूसरा बिठूर जहां उनके चरण हैं। मां गंगा के स्नान के बाद मंदिर में दर्शन करने का विशेष महत्व है।
शहरी शोर शराबे से उकता चुके लोगों को कुछ समय बिठूर में गुजारना काफी रास आता है। बिठूर में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के अनेक पर्यटन स्थल हैं। गंगा किनारे बसे इस नगर का उल्लेख प्राचीन भारत के इतिहास में मिलता है। अनेक कथाएं और किवदंतियां यहां से जुड़ी हुई हैं।
बिठूर वाल्मीकि के तप स्थली के रूप में जानी जाती है। प्रथम स्वाधीनता संग्राम का जिक्र होते ही बिठूर से जुड़ी तमाम यादें जेहन में कौंध जाती हैं। बिठूर में नाना साहब पेशवा की अगुवाई में तात्या टोपे, अजीमुल्ला के साथ लड़ी गई लड़ाई की यादें आज भी ताजा हैं। साथ ही त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने मां सीता को अयोध्या से निकाला था तो वह लखनऊ होते हुए बिठूर में ठहरीं थीं । यहीं पर वाल्मीकि से मिलीं और लव-कुश को जन्म दिया था।
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